पंचायती राज और व्यकल्पिक प्रश्न | Panchayati Raj and Multiple Choice Question
भारत में "पंचायती राज " शब्द का अभिप्राय ग्रामीण स्थानीय स्वशासन पद्धिति से है। यह भारत के सभी राज्यों में जमीन स्तर पर लोकतंत्र के निर्माण हेतु राज्य विधानसभाओ द्वारा स्थापित किया गया है। इसे ग्रामीण विकास का दायित्व सौंपा गया है। 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसे संविधान में शामिल किया गया है।
भारतीय संघीय प्रणाली में केंद्र और राज्यो के बीच शक्तियों के बटवारे की योजना के अंतर्गत 'स्थानीय शासन' का विषय राज्यों को दिया गया है। इस प्रकार संविधान की 7वीं अनुसूची में वर्णित राज्य सूची में पाँचवी प्रविष्टि 'स्थानीय शासन' से सम्बंधित हैं।
पंचायती राज का विकास
बलवंतराय मेहता समिति :- जनवरी 1957 में भारत सरकार ने सामुदायिक विकास कार्यक्रम (1952) तथा राष्ट्रीय विस्तार सेवा (1953) द्वारा किये गए कार्यो की जाँच और उनके बेहतर ढंग से कार्य करने के लिए उपाय सुझाने के लिए एक समिति का गठन किया गया। इस समिति के अध्यक्ष बलवंत राय मेहता थे। समिति ने नवंबर 1957 को अपनी रिपोर्ट सौंपी और " लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण " स्वायत्ता की योजना की सिफारिश की जो की अंतिम रूप से पंचायती राज के रूप में जाना गया। समिति द्वारा दी गयी विशिष्ट सिफारिशें निम्नलिखीत हैं : -
लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण -लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण से आशय है कि शासन सत्ता को एक जगह पर केंद्रित न करके उसे स्थानीय स्तरों पर विभाजित किया जाना चाहिए ताकि सत्ता में आम व्यक्ति की भागीदारी भी सुनिश्चित हो सके। और वह अपने हितो और आवश्यकताओं के अनुरूप शासन संचालन में अपना योगदान दे सके।
- त्रि स्तरीय पंचायती राज पद्धति की स्थापना।
- गाँव स्तर पर ग्राम पंचायत।
- ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति।
- जिला स्तर पर जिला परिषद। ये तीनो स्तर आपस में अप्रत्यक्ष चुनाव द्वारा जुड़े होने चाहिए।
- ग्राम पंचायत की स्थापना प्रत्यक्ष रूप से चुने प्रतिनिधियों द्वारा होना चाहिए ,जबकि पंचायत समिति और जिला परिषद का गठन अप्रत्यक्ष रूप से चुने सदस्यों द्वारा होना चाहिए।
- सभी योजना और विकास के कार्य इन निकायों को सौंपे जाने चाहिए।
- पंचायत समिति को कार्यकारी निकाय तथा जिला परिषद को सलाहकारी ,समन्वयकारी और पर्यवेक्षण निकाय होना चाहिए।
- जिला परिषद् का अध्यक्ष ,जिलाधिकारी होना चाहिए।
- इन लोकतान्त्रिक निकायों में शक्ति तथा उत्तरदायित्व का वास्तविक स्थानांतरण होना चाहिए।
- इन निकायों को पर्याप्त स्त्रोत मिलने चाहिए ताकि ये अपने कार्यो और जिम्मेदारियों को सम्पादित करने में समर्थ हो सकें।
- भविष्य में अधिकारों के और अधिक प्रत्यायन के लिए एक पद्धति विकसित की जानी चाहिए।
समिति की इन सिफारिशों को राष्ट्रीय विकास परिषद् द्वारा जनवरी 1958 में स्वीकार किया गया। परिषद् ने किसी विशिष्ट प्रणाली या नमूने पर जोर नहीं दिया और यह राज्यों पर छोड़ दिया ताकि वे अपनी स्थानीय स्थिति के अनुसार इन नमूनों को विकसित करें। किन्तु बुनयादी सिद्धांत और मुख्य आधारभूत विशेषताएं पुरे देश में समान होनी चाहिए।
राजस्थान देश का पहला राज्य था ,जहाँ पंचायती राज की स्थापना हुई। इस योजना का उद्घाटन 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में तात्कालिक प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया। इसके बाद आंध्र प्रदेश ने इस योजना को 1959 में लागु किया। इसके बाद अधिकांश राज्यों ने इस योजना को प्रारम्भ किया।
यघपि 1960 दशक के मध्य तक बहुत से राज्यों ने पंचायती राज संस्थाए स्थापित कीं। फिर भी राज्यों की इन संस्थाओ में स्तरों की संख्या ,समिति और परिषद् की सापेक्ष स्थिति ,उनका कार्यकाल ,संगठन ,कार्य ,राजस्व और अन्य तरीको में अंतर था। उदाहरण के लिए राजिस्थान ने त्रिस्तरीय पद्धिति अपनाई जबकि तमिलनाडु ने द्विस्तरीय पद्धिति अपनाई। पश्चिम बंगाल ने चार स्तरीय पद्धिति अपनाई। इसके आलावा राजस्थान -आंध्रप्रदेश पद्धति में पंचायत समिति मजबूत थी क्योंकि नियोजन और विकास की इकाई ब्लॉक थी ,महाराष्ट्र ,गुजरात पद्धति में ,जिला परिषद् शक्तिशाली थी क्योकि योजना और विकास की इकाई जिला थी। कुछ राज्यों ने न्याय पंचायत की भी स्थापना की ,जो छोटे दीवानी या आपराधिक मामले के लिए थी।
अध्ययन दल एवं समितियाँ :- सन 1960 से पंचायती राज व्यवस्था की कार्य प्रणाली के विविध पक्षों का अध्ययन करने के लिए अनेक अध्ययन दल ,समितियाँ तथा कार्यदल नियुक्त किये जाते रहे हैं। इसका विवरण निचे तालिका में दिया गया हैं -
2 1961 पंचायत एवं सहकारी समितियों पर गठित कार्य दल एस.बी. मिश्रा
3 1961 पंचायती राज प्रशासन पर अध्ययन दल बी.ईश्वरन
4 1962 न्याय पंचायतो पर अध्ययन दल जी.आर. राजगोपाल
5 1963 पंचायती राजआंदोलन में ग्रामसभा की स्थिति पर अध्ययन दल आर.आर.दिवाकर
6 1963 पंचायती राज संस्थाओ की बजट एवं लेखा प्रक्रिया पर अध्ययन दल एम.रामकृष्णेयया
7 1963 पंचायती राज वित्त परअध्ययन दल के. संथानम
8 1965 पंचायती राज चुनाव पर गठित समिति के. संथानम
9 1966 पंचायती राज निकायों के अंकेछण एवं लेखा पर गठित अध्ययन दल आर.के.खन्ना
10 1966 पंचायती राज प्रशिक्षित केन्द्रो पर गठित समिति जी.रामचन्द्रन
11 1969 मुलभुत भूमि सुधार उपायों के क्रियान्वयन में सामुदायिक विकास
एजेंसियों तथा पंचायती राज संस्थाओ की संलग्नता पर गठित अध्ययन दल वी रामनाथन
12 1972 सामुदायिक विकास एवं पंचायती राज पर पांचवी पंचवर्षीय
के सूत्रण के लिए गठित कार्यदल एम.रामकृष्णेयया
13 1976 सामुदायिक विकास एवं पंचायती राज पर गठित समिति श्रीमती दया चौबे
राजीव गाँधी सरकार : एल.एम. सिंघवी समिति की उपरान्त अनुशंसाओं की प्रतिक्रिया। राजीव गांधी सरकार ने पंचायती राज संस्थाओ के संवैधानीकरण और उन्हें ज्यादा शक्तिशाली और व्यापक बनाने हेतु जुलाई 1989 में 64वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया। यघपि अगस्त 1989 में लोकसभा ने यह विधेयक पारित किया ,किन्तु राज्यसभा द्वारा इसे पारित नहीं किया गया। इस विधेयक का विपक्ष द्वारा जोरदार विरोध किया गया क्योंकि इसके द्वारा संघीय व्यवस्था में केंद्र को मजबूत बनाने का प्रावधान था।
वी.पी सिंह सरकार : नवंबर 1989 में वी.पी.सिंह के प्रधानमंत्रित्व में राष्ट्रिय मोर्चा सरकार ने कार्यालय संभाला और शीघ्र ही घोषणा की कि वे पंचायती राज संस्थाओ को मजबूती प्रदान करेगी। जून 1990 में पंचायती राज संस्थाओ के मजबूत करने सम्बन्धी मामलों पर विचार करने के लिए वी.पी. सिंह की अध्यक्षता में राज्यों के मुख्यमंत्रियों का 2 दिन का सम्मलेन हुआ। सम्मलेन में एक नए संविधान संशोधन विधेयक को पेश करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। परिणामस्वरुप ,सितम्बर 1990 में लोकसभा में एक संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया गया। लेकिन सरकार के गिरने के साथ ही यह विधेयक भी समाप्त हो गया।
नरसिम्हा राव सरकार : पी.वी. नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्व में कांग्रेस सरकार ने एक बार फिर पंचायती राज के संवेधानीकरण के मामले पर विचार किया। इसने प्रारम्भ के विवादस्पद प्रावधानों को हटाकर नया प्रस्ताव रखा और सितम्बर 1991 को लोकसभा में एक संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया। अंततः यह विधेयक 73 वे संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के रूप में पारित हुआ और 24 अप्रैल 1993 को प्रभाव में आया।
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